101+ Allama Iqbal Shayari in Hindi | अल्लामा इक़बाल के शेर

Allama Iqbal Shayari:

अल्लामा इक़बाल का जनम 1877 भारत में हुआ था|जिनकी उर्दू और फारशी भाषा के बीसवीं सदी में से कविता एक है अल्लामा इकबाल ने अपने जीवन के ऊपर जाय्दातर कविताएँ लिखीं और उन्होंने अपने मुख्य रूप से राजनीति, इतिहास,अर्धशासत्रा, दर्शन और धर्म पर विद्वानो के कार्यों में से लिखने के लिए प्रेरित किया गया और पाकिस्तान के बनने के बाद उन्हें वहाँ का राष्टीय कवि का नाम दिया गया इन्हे उर्दू हिंदी फारशी के अलवा अंग्रेजी भाषा भी आती थी|अगर दोश्तों ये पोस्ट पसंद आया होगा तो अपने फॅमिली मेंबर के साथ जरूर शेयर करे और इस पोस्ट से सम्बंधित शायरियाँ दी गयी है अच्छा लगे तो अपना फीडबैक जरूर दे|

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Allama Iqbal Shayari

बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी

औकात’ में रखना था जिसे
गलती से दिल में रखा था उसे

बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ’ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा

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Allama Iqbal Shayari in Hindi

मुझे इश्क के पर लगा कर उड़ा
मेरी खाक ”जुगनू” बना के उड़ा

ग़ुलामी में न काम आती हैं “शमशीरें” न तदबीरें
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें

तू ने ये क्या_ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में

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Allama Iqbal Ki Shayari

सितारों से आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क के इम्तिहान और भी हैं

नशा ”पिला” के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि “गिरतों” को थाम ले साक़ी

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो

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Shayari On Allama Iqbal

मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन

सौ सौ उम्मीदें बंधती है इक इक निगाह पर
मुझ को न ऐसे प्यार साई देखा कराइ कोइ

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख

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Best Allama Iqbal Shayari in Hindi

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है

ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
जिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही

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Allama Iqbal Shayari Status

जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना
वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था

उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए

बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर

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Allama Iqbal Shayari Quotes

गुज़र गया अब वो दौर साक़ी कि छुप के पीते थे पीने वाले
बनेगा सारा जहान मय-ख़ाना हर कोई बादा-ख़्वार होगा

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

मेरे आँसू नही थम रहे कि वो मुझसे जुदा हो गया
और तुम कह रहे हो कि छोड़ो अब ऐसा भी क्या हो गया
मय-कदों में मेरी लाइनें पढ़ते फिरते हैं लोग
मैंने जो कुछ भी पी कर कहा फ़लसफ़ा हो गया

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Shayari Of Allama Iqbal in Hindi

ख़ुदा के आशिक़ तो हैं हज़ारों बनों में फिरते हैं मारे मारे
मैं उस का बंदा बनूँगा जिस को ख़ुदा के बंदों से प्यार होगा

खुदी को कर बुलंद इतना की है तकदीर से पहले,
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है’

जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही

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Latest Allama Iqbal Shayari in Hindi

ना मेरा दिल बुरा था ना उसमे कोई बुराई थी
सब मुकद्दर का खेल था
क़िस्मत में ही जुदाई थी।

कौन यह कहता है खुदा नजर नहीं आता
वही तो नजर आता है जब कुछ नजर नहीं आता

अजीब ज़ुल्म हुई हैं दुनिया में मोहब्बत पर
जिन्हे मिली उन्हे कदर नहीं जिन्हे कदर थी उने मिली नहीं।

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Allama Iqbal Shayari With Image

खामोश ए दिल भारी महफिल में चिल्लाना अच्छा नहीं होता
अदब पहला करीना है मोहब्बत के करीनो में

हम जो जीते थे तो जंगों की मुसीबत के लिए
और मरते थे तिरे नाम की अज़्मत के लिए

उन में काहील भी हैं ग़ाफ़िल भी हैं हुश्यार भी हैं
सैकड़ों हैं कि टायर नाम से बे-ज़ार भी हैं

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Allama Iqbal Par Shayari

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है

हर कोई मस्त-ए-मय-ए-ज़ौक़-ए-तन-आसानी है
तुम मुसलमाँ हो ये अंदाज़-ए-मुसलमानी है

की मोहम्मद से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ है क्या लौह-ओ-क़लम तेरे हैं

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Famous Shayari Of Allama Iqbal

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
की मैं आप की समना चाहती हूँ.

दिल की इमारतों में कहीं बंदगी नहीं
पत्थरों की मस्जिदों में खुदा ढूंढते हैं लोग

मजनूं ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
नज़्जारो की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे

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Allama Iqbal Shayari Urdu

एक ही साफ में खड़े हो गए
महमूद-ओ अयाज़
ना कोई बंदा रहा और ना कोई
बंदा नवाज़।

अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-इ-ज़िंदगी,
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन, अपना तो बन।

गुलामी में ना काम आती है शमशीरें ना तकबीरे
जो हो ज़ौक-ऐ-यक़ीं पैदा तो कट जाती है जंजीरें

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